उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक मुसलमानों के प्रमुख प्रवक्ता अखिलेश यादव और एक मुसलमान मौलवी के बीच एक विवाद उत्पन्न हो गया है।
उत्तर प्रदेश में सांप्रदायिक मुसलमानों के प्रमुख प्रवक्ता अखिलेश यादव और एक मुसलमान मौलवी के बीच एक विवाद उत्पन्न हो गया है। यह बात सही है कि राजनीतिक दल धर्म स्थलों का स्वतंत्र रूप से उपयोग करते रहे हैं। इसी प्रवृत्ति के अंतर्गत अखिलेश यादव ने भी किसी मस्जिद का राजनीतिक उपयोग किया। इसी क्रम में, जब अखिलेश यादव ने मस्जिद में किसी बैठक का आयोजन किया, तब एक मौलवी ने उनकी पत्नी डिंपल यादव के वस्त्रों को लेकर यह टिप्पणी कर दी कि उन्हें मस्जिद के नियमों के अनुसार ही कपड़े पहनने चाहिए थे। मौलवी के अनुसार, डिंपल जिस प्रकार के वस्त्र पहनकर मस्जिद में आई थीं, वे इस्लाम के विरुद्ध हैं।
स्वाभाविक है कि यह टिप्पणी अखिलेश यादव और उनकी पत्नी को आपत्तिजनक लगी। इसके बाद अखिलेश यादव के कुछ अंधभक्तों ने उस मौलवी के साथ एक सार्वजनिक स्थान पर मारपीट कर दी। इस प्रकार, यह मामला अब हिंसा तक पहुँच चुका है। प्रश्न यह उठता है कि क्या उस मौलवी ने अपनी सीमाओं का अतिक्रमण किया? मेरे विचार से, हाँ — मौलवी की यह टिप्पणी अनुचित थी। यह विषय अखिलेश और उनकी पत्नी के बीच सीमित रहना चाहिए था, न कि सार्वजनिक रूप से उठाया जाना चाहिए। इसके अलावा, ऐसी टिप्पणी करने से पूर्व मौलवी को मस्जिद की समिति से विमर्श कर एक संयमित और विचारशील प्रतिक्रिया देनी चाहिए थी। किसी भी व्यक्ति द्वारा इस प्रकार की टिप्पणी को अनधिकृत हस्तक्षेप माना जाएगा।
दूसरी ओर, जिन अखिलेश समर्थकों ने उस मौलवी के साथ मारपीट की, उनकी यह हरकत गुंडागर्दी की श्रेणी में आती है। उन्हें चाहिए था कि वे अखिलेश या मुस्लिम समुदाय के वरिष्ठ लोगों से मिलकर इस टिप्पणी का विरोध शांतिपूर्ण ढंग से कराते। यह अधिक उचित और मर्यादित तरीका होता।
इस पूरे प्रकरण में दोनों पक्षों — मौलवी और अखिलेश समर्थकों — को संयम और धैर्य का परिचय देना चाहिए था। यद्यपि यह मामला सांप्रदायिक मुसलमानों और उनके प्रवक्ताओं के बीच का है, फिर भी चूंकि यह सार्वजनिक रूप से सामने आया है, इसलिए आम जनता के लिए इस पर चर्चा करना स्वाभाविक है।
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