मोहन भागवत का बयान: परिणाम बताया, कारण और समाधान बाकी

मोहन भागवत का बयान: परिणाम बताया, कारण और समाधान बाकी

संघ प्रमुख मोहन भागवत जी जो कुछ भी बोलते हैं, वह बहुत सोच-समझकर और संतुलित ढंग से बोलते हैं। अभी दशहरे के दिन उन्होंने एक महत्वपूर्ण बात कही कि भारत में आर्थिक आधार पर बहुत तेजी से विकास तो हो रहा है, लेकिन यह विकास असंतुलित है। अमीरों की संपत्ति बहुत तेजी से बढ़ रही है, जबकि गरीब और अमीर के बीच की खाई लगातार चौड़ी होती जा रही है, जो कि कम होनी चाहिए। इस विषय पर हमारी सरकार को विचार करना चाहिए।

मेरा ऐसा मानना है कि जो कुछ भी हो रहा है, वह एक परिणाम है। भागवत जी ने परिणाम तो बता दिया, लेकिन कारण नहीं बताया और समाधान भी नहीं सुझाया, क्योंकि उन्हें न तो कारण का पता है और न ही समाधान का। सच्चाई यह है कि सारी दुनिया में गरीब और अमीर के बीच का अंतर बढ़ रहा है, और भारत में यह दुनिया के अन्य देशों की अपेक्षा अधिक तेजी से बढ़ रहा है। लेकिन यदि आप मेरे द्वारा 70 वर्ष पहले लिखे गए साहित्य को पढ़ेंगे, तो उसमें इस बात की भविष्यवाणी की गई थी कि ऐसा होने वाला है। इसका कारण भी बताया गया था और समाधान भी सुझाया गया था। मैंने लिखा था कि श्रम शोषण के उद्देश्य से ही बुद्धिजीवी कृत्रिम ऊर्जा का मूल्य घटाकर रखते हैं। दुनिया में बुद्धिजीवियों का वर्चस्व है और भारत में भी है। जब तक कृत्रिम ऊर्जा का मूल्य नहीं बढ़ेगा, तब तक इस प्रकार गरीब और अमीर के बीच का अंतर बढ़ता ही रहेगा, क्योंकि बुद्धिजीवी तथा अमीर मिलकर कृत्रिम ऊर्जा का अधिक उपयोग करके श्रम शोषण करेंगे।

इसका समाधान यह है कि भारत में कृत्रिम ऊर्जा का मूल्य ढाई गुना कर देना चाहिए और उससे प्राप्त पूरी राशि को एक अलग स्थान पर रख देना चाहिए, जो या तो प्रत्येक व्यक्ति में बराबर बांट दी जाए अथवा आम लोगों की सहमति से कुछ टैक्स घटाए जा सकते हैं या कहीं और उपयोग किया जा सकता है, लेकिन यह राशि सरकार के खजाने में न जाए। परिस्थितियों के अनुसार, यह कार्य 5 वर्षों में किया जा सकता है—प्रतिवर्ष 20% की दर से। इसके अतिरिक्त कोई अन्य मार्ग नहीं है कि आप गरीब और अमीर के बीच की खाई कम कर सकें, या पर्यावरण प्रदूषण कम कर सकें, या ऐसी ही अन्य अनेक समस्याओं का समाधान कर सकें। जब तक आप कृत्रिम ऊर्जा की मूल्य वृद्धि नहीं करते, तब तक आपको सारे दुष्परिणाम झेलने पड़ेंगे, और उनमें से एक दुष्परिणाम का जिक्र भागवत जी ने किया है।