इस घटना से कुछ लोगों को तो बड़ा लाभ हुआ, जबकि समाज को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
अभी कुछ दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश पर हमले की एक असफल कोशिश हुई। इस घटना से कुछ लोगों को तो बड़ा लाभ हुआ, जबकि समाज को भारी नुकसान उठाना पड़ा।
मुख्य हमलावर एक अधिवक्ता था — वह पहले अयोग्य और उपेक्षित माना जाता था, परंतु इस चाल से उसने समाज में अचानक पहचान बना ली। संभव है कि उसे आर्थिक लाभ भी मिला हो।
मीडिया को भी इस घटना से खूब फायदा हुआ। उसने इसे सनसनी बनाकर अपनी टीआरपी बढ़ाई। साम्यवादी गुटों को भी इस घटना से अप्रत्याशित लाभ मिला — वे जो हाल ही में हाशिये पर चले गए थे, उन्हें संघ को दोष देने का नया अवसर मिल गया। जबकि संघ का इस घटना से कोई संबंध नहीं था, फिर भी साम्यवादी अब उसी पुरानी रट को दोहराने लगे हैं।
कुछ सावरकरवादियों को भी इस घटना से लाभ मिला है। वे इस घटना को उभारकर हिंसक प्रवृत्तियों के समर्थन में अपनी स्थिति मजबूत करने का प्रयास कर रहे हैं।
सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश स्वयं भी इस घटना से प्रतिष्ठित होकर उभरे हैं। उन्होंने जिस निर्णय को लेकर विवाद हुआ था, वह निर्णय वस्तुतः न्यायसंगत था। हमले के दिन भी उनका शांत और संयमित व्यवहार उल्लेखनीय रहा। उन्होंने अपराधी को माफ कर दिया — यह उनकी गरिमा और नैतिक ऊँचाई को और बढ़ा देता है। उन्होंने उच्च पदों पर आसीन लोगों के लिए एक नई मर्यादा रेखा खींच दी है।
लेकिन इस पूरी घटना में सबसे अधिक नुकसान हम सबका हुआ है। जिन प्रवृत्तियों से हम निरंतर टकरा रहे थे, वे सभी अब और अधिक शक्तिशाली हो गई हैं। इस घटना की उसी दिन कड़ी निंदा होनी चाहिए थी, जब सनातन के नाम पर सावरकरवादी अपने प्रभाव को बढ़ाने की कोशिश कर रहे थे। इतिहास गवाह है कि जो भी देश उग्रवादियों के आगे झुकते हैं, उन्हें भविष्य में भारी नुकसान उठाना पड़ता है — पाकिस्तान और बांग्लादेश इसके उदाहरण हैं। गांधी हत्या के बाद हम स्वयं भी इसका दंश झेल चुके हैं।
अगर हम सावरकरवादियों को और सिर चढ़ाते रहे, तो वही गलती फिर दोहराई जाएगी। इसलिए समय रहते हमें सतर्क होना होगा और उन सभी लोगों की खुलकर निंदा करनी होगी जिन्होंने सुप्रीम कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश के न्यायपूर्ण निर्णय की आलोचना की थी।
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