संसद सदस्यों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और दलबदल कानून
संसद सदस्यों की अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता और दलबदल कानून
मनीष तिवारी को कांग्रेस पार्टी के एक समझदार और नपे-तुले नेता के रूप में जाना जाता है। वे कम बोलते हैं, लेकिन उनकी हर बात अत्यधिक महत्वपूर्ण होती है। वर्तमान में, वह चंडीगढ़ से लोकसभा के सदस्य हैं।
मैं लंबे समय से इस बात की पुरजोर माँग करता रहा हूँ कि संसद सदस्यों को संवैधानिक रूप से संसद के भीतर बोलने की पूर्ण स्वतंत्रता मिलनी चाहिए।
दलबदल कानून बनाकर उनकी इस स्वतंत्रता पर जो रोक लगाई गई है, वह पूरी तरह से गलत है। एक संसद सदस्य जन-प्रतिनिधि होता है, न कि केवल दल का प्रतिनिधि। उसे केवल 'दल प्रतिनिधि' घोषित करके संविधान के साथ अन्याय किया गया है।
हालांकि मेरी इस माँग को अब तक अनसुना किया जाता रहा है, लेकिन अब मनीष तिवारी ने भी संसद में यह माँग उठाकर इस विषय को महत्व दिया है। उन्होंने कहा है कि जन-प्रतिनिधियों को दल की तरफ से बोलने पर कोई रोक नहीं लगाई जानी चाहिए, उन्हें संसद में स्वतंत्रतापूर्वक अपनी बात रखने का अधिकार होना चाहिए।
मैं मनीष तिवारी के इस रुख से पूरी तरह सहमत हूँ।
मेरे विचार से तो संपूर्ण दलबदल कानून ही समाप्त होना चाहिए, लेकिन किसी सांसद द्वारा इतनी भी शुरुआत करना एक शुभ संकेत है। कांग्रेस पार्टी और सरकार, दोनों को ही इस महत्वपूर्ण संवैधानिक मुद्दे पर गंभीरता से विचार करना चाहिए।
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