27 जुलाई प्रातः कालीन सत्र हम सभी व्यक्ति मिलकर एक संसद चुनते हैं।
27 जुलाई प्रातः कालीन सत्र हम सभी व्यक्ति मिलकर एक संसद चुनते हैं। उस संसद में 543 लोग चुने जाते हैं वह सांसद ही मिलकर अप्रत्यक्ष रूप से हमारी सरकार बन जाती है वह संसद ही अप्रत्यक्ष रूप से सरकार में हमारा प्रतिनिधित्व करती है वह संसद नियम कानून बनाकर एक न्यायपालिका बनती है वह संसद ही एक प्रधानमंत्री चुनती है वह संसद ही आम लोगों पर नियंत्रण के लिए कानून बनाती है इस तरह वह संसद ही अप्रत्यक्ष रूप से समाज के स्थान पर कार्य करती है। लेकिन दुर्भाग्य है कि आम जनता के चुने हुए लोगों को राजनीतिक दल अपने कब्जे में कर लिए इसका परिणाम हुआ की संसद गुटबाजी में फंस गई संसद दलगत राजनीति का शिकार हो गई। संसद पक्षपात करने लगी संसद जनता का विश्वास खो चुकी। हमारे संसद सदस्यों ने विश्वास नहीं खोया है बल्कि संसदीय प्रणाली का विश्वास खत्म हुआ है। अब हमें अपनी संसद की इन बुराइयों को दूर करना चाहिए इसलिए हम एक आदर्श व्यवस्था में एक अलग तरह की प्रतिनिधि सभा बना रहे हैं जिसमें एक संविधान सभा अलग होगी संसद अलग होगी और संसद के समक्ष ही संघ सरकार होगी। लेकिन वर्तमान व्यावहारिक स्थिति में जब तक हम आदर्श की स्थिति तक नहीं बढ़ जाते हैं तब तक संसद को उस स्थिति पर ले आना चाहिए जैसा अंबेडकर के संविधान में था और अंबेडकर के संविधान का दुरुपयोग करके हमारे नेताओं ने बाद में उस संविधान को गंदा कर दिया इस गंदगी को निकाल दिया जाए अर्थात हमारे सांसद निर्दलीय हो कार्यपालिका में किसी दल की भी कोई भूमिका न हो न्याय पालिका कार्यपालिका और विधायिका स्वतंत्र रूप से अलग-अलग होकर अपना काम करें हम आदर्श स्थिति पर जनमत जागरण करते रहेंगे लेकिन अस्थाई रूप से हम अपनी संसदीय प्रणाली को दलदल से निकलने का प्रयास करेंगे अर्थात हमें तत्काल दल मुक्त भारत के पक्ष में आवाज उठानी चाहिए।
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