गांधी एक बहुत बड़े विचारक थे और सावरकर एक योद्धा।
गांधी एक बहुत बड़े विचारक थे और सावरकर एक योद्धा। वैचारिक धरातल पर गांधी और सावरकर की किसी प्रकार की तुलना नहीं हो सकती, क्योंकि गांधी एक विचारक थे और सावरकर केवल योद्धा। यह बात भी जगजाहिर है कि योद्धा और राजनेता कभी विचारक को पसंद नहीं करते, लेकिन विचारक की लोकमान्यता उन्हें चुप रहने के लिए बाध्य कर देती है। स्वतंत्रता संग्राम में भी यही हुआ।
गांधी ने स्वतंत्रता का मार्ग बताया और नेहरू, अंबेडकर, सावरकर, जिन्ना—इन सबने गांधी के मार्गदर्शन में संघर्ष किया। लेकिन इन सभी सैनिकों ने गांधी को तो पसंद किया, पर गांधी के विचारों को कभी पसंद नहीं किया। ये लोग गांधी विचारों से हमेशा चिढ़ते रहे। जब भारत स्वतंत्र हो गया और गांधी की आवश्यकता समाप्त हो गई, तो सबने मिलकर गांधी को किनारे कर दिया और उनके साथ-साथ गांधी विचारों को भी कैद में डाल दिया।
उस समय से गांधी विचार जेल में बंद रहे, और गांधी के नाम पर दो दुकानदार सामने आकर “गांधी नाम” की दुकानदारी करने लगे। गांधी विचार तो जेल में बंद थे, अब उनका कोई अर्थ नहीं रह गया था। लेकिन साम्यवादी और सावरकरवादी, ये दोनों विपरीत गुट गांधी के नाम पर दुकानदारी करने लगे। साम्यवादियों को पंडित नेहरू का साथ मिला
और सावरकरवादियों को संघ का। इस तरह भारत की दो बड़ी राजनीतिक शक्तियां गांधी के नाम का व्यापार करने लगीं और गांधी विचारों को इस आधार पर जेल में रखे रहीं कि नेहरू परिवार गांधी विचारों की रक्षा कर रहा है और सावरकरवादियों से गांधी विचारों को खतरा है।
हम लोगों ने लगभग 30 वर्ष पहले गांधी विचारों को जेल से मुक्त कराने की योजना बनाई। इसके लिए यह आवश्यक था कि संघ और गांधीवादियों के बीच आपसी विचार-विमर्श हो। यही प्रयास धीरे-धीरे सफल हुआ। अब पिछले 10 वर्षों से गांधी विचार मुक्त हुआ है, लेकिन अब भी कुछ साम्यवादियों और सावरकरवादियों को इस बात का बहुत कष्ट है कि हमने मिलकर उनकी दुकानदारी में व्यवधान उत्पन्न कर दिया।
फिर भी हमारा प्रयास जारी है कि गांधीवादियों और संघ के बीच टकराव समाप्त होता जाए और गांधी विचार पूरी स्वतंत्रता के साथ देश में आगे बढ़े। सावरकरवादियों और साम्यवादियों की दुकानदारी पूरी तरह बंद होनी चाहिए।
2 अक्टूबर को वाराणसी से गांधीवादियों की एक यात्रा प्रारंभ हुई है। उस यात्रा में हमारे प्रतिनिधियों ने भी यह संदेश दिया है कि अब हमें सावरकरवादियों और साम्यवादियों से दूर होकर लोक स्वराज की दिशा में आगे बढ़ना चाहिए। संपत्ति या अन्य किसी प्रकार के झगड़े आप लड़ते रहें, लेकिन उन्हें किसी भी रूप में इस लोक स्वराज की प्रक्रिया में बाधक नहीं बनने देना चाहिए।
मैं आप सबसे निवेदन करता हूं कि अब साम्यवादियों और सावरकरवादियों को किनारे रखकर हमें नरेंद्र मोदी और मोहन भागवत के नेतृत्व में लोक स्वराज को सफल बनाना है।
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