दो धाराएँ थीं — एक गांधी की विचारधारा और दूसरी नेहरू की विचारधारा।

भारत के स्वतंत्रता संग्राम में दो विपरीत विचारधाराएँ एक साथ काम कर रही थीं। वे दो धाराएँ थीं — एक गांधी की विचारधारा और दूसरी नेहरू की विचारधारा।

गांधी विचारधारा आर्य संस्कारों से प्रभावित थी, जिसे अब वैदिक, सनातन, हिंदू या भारतीय संस्कृति भी कहा जाता है।

नेहरू विचारधारा में आर्य संस्कारों को छोड़कर पाश्चात्य, इस्लामी, साम्यवादी तथा अन्य तत्वों का मिला-जुला समावेश था। इसमें सर्वाधिक प्रभाव समाजवादी विचारधारा का था।

 

कुछ लोग सावरकर को एक अलग विचारधारा मानते हैं, लेकिन सावरकर केवल मुस्लिम-विरोध तक सीमित थे। सावरकर का कोई व्यापक प्रभाव नहीं था। आम जनता में भी नेहरू या गांधी विचारधारा का ही महत्व था, सावरकर का नहीं।

भारत विभाजन के बाद मुस्लिम विचारधारा प्रभावहीन हुई, तो गांधी हत्या के बाद संघ विचार भी कटघरे में आ गया। फिर भी संघ परिवार ने ‘हिंदू’ शब्द पर अधिकार बनाए रखा, और साम्यवाद ने ‘समाज’ शब्द पर।

संघ परिवार हिंदुत्व की दिशा में सोचता रहा, जबकि साम्यवाद का समाज शब्द से कोई वास्तविक संबंध नहीं रहा, वह तो केवल समाज शब्द की दुकानदारी करता रहा।

 

गांधी विचारधारा का मुख्य तत्व है "सामाजिक राजनीति", और नेहरू विचारधारा का मुख्य तत्व है "राजनीतिक समाज"।

गांधी मानते थे लोकतांत्रिक संसद, और नेहरू मानते थे संसदीय लोकतंत्र।

गांधी तंत्र को प्रबंधक मानते थे, जबकि नेहरू तंत्र को संरक्षक मानते थे।

 

गांधी विचारधारा में सत्य, अहिंसा, वर्ग-समन्वय, हिंदुत्व, व्यक्ति स्वतंत्रता, सहजीवन, अधिकारों का विकेंद्रीकरण, कर्तव्य-प्रधानता, श्रम-सम्मान, नैतिकता, संस्थागत चरित्र, सत्ता का अकेंद्रीकरण आदि गुण माने जाते हैं।

दूसरी ओर, नेहरू विचारधारा में चालाकी, बल-प्रयोग, वर्ग-निर्माण, वर्ग-विवाद, उच्च-निम्न श्रेणीकरण, अल्पसंख्यक प्रोत्साहन, शासन-कूटनीति, अधिकार-प्रधानता, संगठन-शक्ति और बुद्धिजीवी महत्व आदि शामिल रहे।

 

वैचारिक धरातल पर बिल्कुल विपरीत होने के बावजूद, दोनों स्वतंत्रता संघर्ष के मामले में साथ थे।

स्वतंत्रता मिलने का आभास होते ही दोनों विचारधाराओं में टकराव शुरू हो गया, जिसमें सभी प्रमुख राजनेता — नेहरू, सावरकर, अंबेडकर, जिन्ना आदि — एक साथ हो गए।

इन सबने मिलकर गांधी विचारधारा का विरोध किया और माउंटबेटन को अपना केंद्र बनाया।

 

गांधी हत्या में भले ही प्रत्यक्ष भूमिका किसी की भी रही हो, किंतु अप्रत्यक्ष भूमिका इस माउंटबेटन-केंद्रित चर्चा की भी थी।

गांधी की हत्या होते ही नेहरू संस्कृति ने संपूर्ण भारत का प्रतिनिधित्व कर लिया।

गांधी विचारधारा को आगे बढ़ाने के लिए बनी संस्था सर्वोदय भी नेहरू विचारों से प्रभावित होती चली गई, क्योंकि सर्वोदय परिवार में संस्कृतनिष्ठ और चरित्रवान लोगों का बाहुल्य रहा, स्वतंत्र चिंतन करने वालों का नहीं।

ये लोग चालाकी को न समझकर संघ विचार को ही हिंदू संस्कृति मानने लगे। गांधी के अभाव में सर्वोदय पूरी तरह नेहरू की ओर झुक गया।

 

ऐसी विपरीत परिस्थितियों में भारत स्वतंत्र हुआ।

स्वतंत्रता के बाद गांधी विचार को पूरी तरह प्रभावहीन कर दिया गया।

इस प्रभावहीनता में नेहरू विचारधारा ने प्रमुख भूमिका निभाई, और सावरकर ने अप्रत्यक्ष रूप से उस विचारधारा को आगे बढ़ाने में वैसा योगदान दिया, जैसे किसी रामलीला में दो भाई राम और रावण के रूप में युद्ध करते हैं और मिलने वाला धन आपस में बाँट लेते हैं।

 

अब समय आ गया है कि हम सावरकरवादियों और नेहरूवादियों की इस मिली-जुली रामलीला का पर्दाफाश करें।

हम समाज के सामने यह स्पष्ट करेंगे कि हमें नेहरू विचारधारा और सावरकरवादी विचारधारा से हटकर हिंदुत्व की विचारधारा को आगे बढ़ाना है — उसी दिशा में वर्तमान समय में नरेंद्र मोदी और मोहन भागवत चल रहे हैं।

इस चर्चा को हम जेएनयू संस्कृति तक आगे बढ़ाएँगे।

साभार मुनि जी