वर्तमान समाज में महिला-पुरुष संबंधों को लेकर पूरी दुनिया एक व्यापक बहस चल रही है, और विशेष रूप से भारत में।
वर्तमान समाज में महिला-पुरुष संबंधों को लेकर पूरी दुनिया एक व्यापक बहस चल रही है, और विशेष रूप से भारत में।
आजकल पूरी दुनिया में और विशेष रूप से भारत में इस बात पर एक बहस छिड़ी हुई है कि महिला और पुरुष के संबंध किस प्रकार के होने चाहिए। क्या महिलाओं को सशक्त होना चाहिए क्या महिलाओं को भी शिक्षित होना चाहिए क्या महिलाओं को भी राजनीति और सरकारी नौकरियों में अधिक भूमिका होनी चाहिए क्या महिला और पुरुष के बीच में जो वर्तमान बढ़ी हुई दूरी है यह दूरी कम होनी चाहिए। क्या होना चाहिए। वर्तमान परिस्थितियों में क्या गलत है और उस गलत में क्या सुधार किया जाना चाहिए इस संबंध में सबके अपने-अपने विचार हैं । मोहन भागवत जी भी हर विषय पर बहुत सोच समझ कर बोलते हैं। कल भागवत जी ने भी यह बात बताई कि महिलाओं को सशक्त होना चाहिए। इस विषय पर मैं बहुत गंभीरता से चिंतन किया। भागवत जी ने जो कहा है वह वर्तमान राजनीतिक वातावरण में तो बहुत ठीक है किंतु इसके दूरगामी सामाजिक परिणाम अच्छे नहीं होंगे। किसी जमाने में इसी तरह पुरुष सशक्तिकरण की भी आवाज उठी होगी जैसी आज महिला सशक्तिकरण की उठ रही है। मेरा यह मत है कि महिला और पुरुष के बीच में दूरी घटनी चाहिए या बढ़नी चाहिए यह परिवार तय करेगा इस विषय में अंतिम निर्णय समाज या सत्ता को क्यों करना चाहिए। यह बात सिद्धांत रूप से सही है कि यदि महिला और पुरुष के बीच दूरी घटेगी तो अनैतिकता का खतरा बढ़ेगा फिर आपको इस मामले में चरित्र के मामले में अपनी नीतियों में सुधार करना होगा। यदि महिला और पुरुष के बीच में दूरी बढ़ेगी तो पुरुष प्रधान व्यवस्था आ जाएगी यह भी उचित नहीं है अगर महिलाओं को मजबूत कर दिया जाएगा तो वर्तमान वातावरण में जिस तरह महिलाएं पुरुषों को ब्लैकमेल करने में सफल हो जा रही है वह खतरा बढ़ेगा यदि महिलाएं कमजोर रहेगी तो परिवार अन्य परिवारों के साथ कंपटीशन नहीं कर पाएगा। यह सब बातें होते हुए भी इस विषय में सत्ता या समाज को क्यों दखल देना चाहिए। महिला सशक्त हो या पुरुष हो यह बात परिवार तय करें। हम लोगों ने यह क्यों मान लिया है की परिवार के लोग नासमझ हैं मूर्ख हैं और हम उनके विषय में बिना उनकी सहमति के कोई नियम थोप सकते हैं। यह नीति हमेशा समाज के लिए घातक होगी। मेरे विचार से प्रत्येक व्यक्ति को सामान स्वतंत्रता दे दीजिए उन्हें अपना निर्णय आपस में मिलकर करने दीजिए प्रत्येक व्यक्ति को गलती करने तक की स्वतंत्रता ही लोक स्वराज है इसमें महिला और पुरुष कमजोर या मजबूत किसी भी प्रकार के नियम उचित नहीं है। इसलिए भागवत जी ने जो कहा है वह राजनीतिक आधार पर बिल्कुल सही है और सामाजिक आधार पर उस पर अलग से विचार होना चाहिए।
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