उपराष्ट्रपति धनकर के त्यागपत्र ने पूरे देश में एक नई बहस को जन्म दे दिया है।
उपराष्ट्रपति धनकर के त्यागपत्र ने पूरे देश में एक नई बहस को जन्म दे दिया है। आखिर ऐसी परिस्थितियों कैसे पैदा हुई जिसमें एकाएक इस तरह की घटना घटित हो गई। मेरे विचार से यह कोई एकाएक होने वाली घटना नहीं है बल्कि यह तो समाजवादियों का आम चरित्र है। मैं स्वयं भी बचपन से समाजवादी ही रहा हूं और मेरा स्वभाव भी बहुत कुछ उस प्रवृत्ति से मिलता जुलता है। मेरा अपना अनुभव है कि समाजवादी साम्यवादियों और संघ परिवार के मध्य में होते हैं। इनके अंदर अप्रत्यक्ष रूप से इन दोनों विचारों का संतुलन होता है। समाजवादी साम्यवादियों की तुलना में कम और संघ परिवार की अपेक्षा कई गुना अधिक तार्किक होते हैं। समाजवादी कम्युनिस्ट और संघ परिवार की तुलना में कुछ कम ईमानदार होते हैं किंतु फिर भी अन्य लोगों की तुलना में अधिक ईमानदार होते हैं। लेकिन यदि कोई समाजवादी जाट होता है तो वह बहुत ज्यादा अतिवादी हो जाता है। यह भी मेरा अनुभव है चरण सिंह सत्यपाल और धनखड़ इसके प्रत्यक्ष उदाहरण हैं । मेरा अपना यह भी अनुभव है कि समाजवादी अनुशासन का कभी पालन नहीं करते वह बहुत अधिक महत्वाकांक्षी होते हैं चाहे वह महत्वाकांक्षा सत्ता की हो अथवा धन की। कोई भी महत्वाकांक्षा हो सकती है। समाजवादी बहुत अधिक सक्रिय प्रवृत्ति के होते हैं वह जिस दिशा में चलते हैं बहुत तेज गति से चलते हैं नीतीश कुमार भी एक समाजवादी हैं और आपने नीतीश कुमार के अंदर भी इस प्रकार के गुण देखे होंगे। लेकिन समाजवादियों में एक बहुत बड़ा दुर्गुण होता है कि वह कभी भी किसी समाजवादी के साथ भी लंबे समय तक एडजस्ट नहीं कर सकते क्योंकि उनमें अनुशासन लंबे समय तक चल ही नहीं सकता। वह निरंतर दुविधा में रहते हैं वह जिसके पीछे चलेंगे उसके पीछे बहुत तेज गति से और आगे निकलने की कोशिश करेंगे । सत्यपाल मलिक नीतीश कुमार अथवा धनखड़ सबका स्वभाव यही रहा है की अति महत्वाकांक्षा ने इन्हें किसी के साथ लंबे समय तक नहीं चलने दिया। इसलिए धनकर बहुत तेजी से नरेंद्र मोदी के प्रिय हो गए थे और उतनी ही तेजी से उनकी महत्वाकांक्षा ने जोर मारा इसलिए धनकड का इस तरह जाना कोई अप्रत्याशित घटना नहीं है। यह समाजवादी चरित्र का ही एक उदाहरण है और वह भी समाजवादी जाट होने का। यदि यह घटना नहीं होती उनके समाजवादी और जाट होने पर भी संदेह पैदा हो जाता ।
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