हम केवल भारत की समस्याओं पर ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व की चुनौतियों पर भी गंभीरतापूर्वक चिंतन कर रहे हैं।

हम केवल भारत की समस्याओं पर ही नहीं, बल्कि संपूर्ण विश्व की चुनौतियों पर भी गंभीरतापूर्वक चिंतन कर रहे हैं। माँ संस्थान इस क्षेत्र में निरंतर विचार, प्रयोग और निष्कर्ष-निर्माण की प्रक्रिया में है। इन निष्कर्षों के आधार पर व्यवहारिक कार्यवाही की तैयारी भी जारी है।
यद्यपि हमारा प्रारम्भ भारत से हो रहा है, परंतु हमारी चिंता और दृष्टि पूरी मानवता और सम्पूर्ण विश्व-व्यवस्था पर केंद्रित है।

वर्तमान में विश्वभर में सरकार बदलने के लिए संवैधानिक, अहिंसक और व्यावहारिक मार्ग लगभग अनुपस्थित हैं। अधिकांश देशों में सत्ता-परिवर्तन प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से बल-प्रयोग और हिंसा पर निर्भर है। हम इस स्थिति को बदलने के लिए एक वैकल्पिक, शांतिपूर्ण और स्थायी व्यवस्था प्रस्तुत करेंगे।

भारत में जिस नई व्यवस्था का प्रयोग प्रारंभ किया गया है, उसी का विस्तारित स्वरूप हम विश्व-स्तर पर भी लागू करने का विचार कर रहे हैं। इस व्यवस्था में समाज का प्रतिनिधित्व तीन इकाइयाँ मिलकर करेंगी—

  1. राष्ट्रपति,
  2. संविधान सभा,
  3. तंत्र (प्रशासनिक व्यवस्था)

यही तीनों मिलकर विश्व-व्यवस्था का संचालन भी करेंगी। यदि ये तीनों किसी विषय पर सहमति से निर्णय लेते हैं, तो उसे समाज का सामूहिक निर्णय माना जाएगा। लेकिन यदि इन तीनों में से कोई एक वीटो करता है, तो उस विषय पर सीधे आम जनता मतदान करेगी। इस प्रकार हिंसा या बल-प्रयोग द्वारा सरकार बदलने की संभावना पूर्णतः समाप्त हो जाएगी।

हम सुरक्षा-व्यवस्था को भी नई सोच के साथ पुनर्गठित करेंगे। जिस प्रकार शरीर में थोड़ी-सी मात्रा में रक्त पूरे शरीर की सुरक्षा सुनिश्चित करता है, उसी प्रकार सेना और पुलिस की व्यवस्था न्यूनतम किन्तु अत्यंत प्रभावी संरचना में होगी। इस विषय पर भी निरंतर मंथन जारी है, और बहुत शीघ्र हम इसके स्पष्ट निष्कर्ष समाज के समक्ष प्रस्तुत करेंगे।