नई समाज-व्यवस्था पूर्णतः लोकतांत्रिक होनी चाहिए या उसमें कुछ सुधार एवं संशोधन की आवश्यकता है।
सत्र में हम नई समाज-व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। यह एक गंभीर विषय है कि नई समाज-व्यवस्था पूर्णतः लोकतांत्रिक होनी चाहिए या उसमें कुछ सुधार एवं संशोधन की आवश्यकता है। वर्तमान चुनाव प्रणाली को भी परिपूर्ण नहीं माना जा सकता। यद्यपि यह प्रणाली लोकतांत्रिक है, लेकिन व्यवहार में यह समाज को दो गुटों में बाँट देती है।
हाल ही में भारतीय जनता पार्टी ने जिस प्रकार अपने राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष और उत्तर प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव किया, वह चुनाव-प्रणाली भी विचारणीय है। मैंने बहुत पहले इस प्रकार की प्रणाली का प्रयोग अपने परिवार स्तर पर किया था। मैंने परिवार में दो पद निर्धारित किए—एक परिवार प्रमुख और दूसरा मुखिया।
परिवार प्रमुख वह होगा जो परिवार का सबसे अधिक आयु वाला और सबसे अधिक सम्मानित व्यक्ति हो। वही परिवार के मुखिया की नियुक्ति करेगा। मुखिया की भूमिका प्रधानमंत्री के समान होगी, जबकि परिवार प्रमुख की भूमिका राष्ट्रपति के समान मानी जाएगी। अंतिम निर्णय पूरे परिवार की सामूहिक बैठक में लिया जाएगा।
इस प्रकार किसी नए मॉडल पर विचार किया जा सकता है, जिसके आधार पर एक नई चुनाव-प्रणाली विकसित की जा सके। क्योंकि तानाशाही अत्यंत घातक होती है और वर्तमान लोकतांत्रिक व्यवस्था भी अनेक समस्याओं का समाधान करने में असफल सिद्ध हो रही है। इसलिए इन दोनों के विकल्प के रूप में किसी नई प्रणाली पर गंभीरता से विचार करना आवश्यक है। मैं इस दिशा में लगातार चिंतन कर रहा हूँ और व्यवहारिक प्रयोग भी कर रहा हूँ।
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